Friday, March 13, 2009

जौहरियों के योग्य नीति



रत्न व्यवसाय सदा से ही एक बहुत हो सन्मानजनक व्यवसाय रहा है एवं इस व्यापर में रत्नो की परख के साथ व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता महत्वपूर्ण रही है. जोहरी का ईमानदार एवं नीतिवान होना बहुत ही आवश्यक होता था. यहाँ पर मैं एक पुराण कवित्त उद्धृत कर रहा हूँ जिसमे जौहरियों के योग्य १६ नीतियां बताई गई है. आज के संदर्व में यह और भी महत्वपूर्ण हो गया है. 

रत्न
पारखी, चलत जे, सोलह वचन प्रमाण
मान धर्म परतीत वश, रहे सर्व सुख जान॥

गुरु पद पद्मा सदा उर धरे, जाय जहाँ सब कारज सरे
सत्य रत्न कह बेचे झूँठा, देत कष्ट तेहि ग्रह सब रूठा
खोट मिला कर बेचे सच्चा, दगाबाज़ वो जौहरी कच्चा
बड निकाल बदले घट डारी, अंग दुःखी वा सुत धन हारी

सत्य खरीद नफे नहिं कहे, सो पापी वृथा जौहरी रहे
मांगनी फरक झूठ कह साई, दगा दोष परतीत घटाई
साईं दे लेकर फ़िर जाई, बात तजे बड़ दोष हँसाई
बिका रत्न कम तोल तोली, न्याई बन लैं पाप मोली

लेहि भेद पर कर चतुराई, समझ वक्त निज काज बनाई
अति प्रिय मित्र देही नदिं भेदा, काज हानि मूरख बन खेदा
सभा काहु की सच मणि खोटी, कह निज करे बात नहिं छोटी
सभा बीच बड़ बोल बोले, निज हित काज प्रतिष्ठा डोले

वचन बनाय सत्य अस कहे, गाहक सभा नृपति खुश रहे
नहिं कर दगा घात विश्वासा , प्रथम लाभ अंतहि सब नासा
तज बदनीत कुकर्म अभिमाना, सब सुख काज सिध्द जग माना
निज मत धर्म नहिं तजे, सुख सब अंत मोक्ष हरि भजे

रत्न प्रकाश, श्री राजरूप टांक से सादर उद्धृत
Thanks,
(Vardhaman Gems, Jaipur represents Centuries Old Tradition of Excellence in Gems and Jewelry)











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